Gau Mukhi Shankh ( गोमुखी शंख )
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गोमुखी शंख की उत्पत्ति सतयुग में समुद्र मंथन के समय हुई। जब 14 प्रकार के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ तब लक्ष्मी के पश्चात् शंखकल्प का जन्म हुआ। उसी क्रम में गोमुखी कामधेनु शंख का जन्म माना गया है। पौराणिक ग्रंथों एवं शंखकल्प संहिता के अनुसार कामधेनु शंख संसार में मनोकामनापूर्ति के लिए ही प्रकट हुआ है। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी शंख के नाम से जाना जाता है। पौराणिक शास्त्रों 72में इसका नाम कामधेनु गोमुखी शंख है। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामनापूर्ति का एक मात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। इसका आकार कामधेनु के मुख जैसा है। लाल-पीला रंग का प्राकृतिक जबड़ा मुंह के रूप की शोभा बढ़़ा रहा है। ऊपर दो-तीन सिंग बने हुए हैं। - कामधेनु गोमुखी शंख के प्रयोग: किसी भी शुभ मुहूर्त में लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठकर सामने गोमुखी शंख को